सौकर सेवी सन्त परम्परा

प्रत्येक मानव अपनी दिनचर्या में चारों वर्णों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र को धारण करता है वैसे ही वह अपनी दैनिक क्रियाओं में कई तीर्थों का भ्रमण करता है। सोरों सूकरक्षेत्र, अयोध्या, कुरुक्षेत्र, प्रयाग, अवन्तिका, रेणुका क्षेत्र (ब्रज) पुनः सूकरक्षेत्र में आ जाता है। सृष्टि उद्गम और निसर्जन 'सूकरक्षेत्र' (सोरों) है अर्थात्-जन्म व मृत्यु (सोना और जगना) यह जीव मात्र की दैनिक क्रिया है जागने के बाद जीव का सम्पर्क उसके परिवार से होता अर्थात् अब वह 'अयोध्या' में है नित्य क्रिया से निवृत्त हो के बाद व्यक्ति अपने 'कुरुक्षेत्र' (कार्यस्थल) में पहुँचता है वहाँ उसे दो स्थान में एक साथ प्रवेश करना होता है- 'प्रयाग' और 'अवन्तिका' प्रयाग अर्थात- याश्रवल्क्य भारद्वाज संवाद प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में संवाद करना होगा यह 'प्रयाग' है। 'अवन्तिका' अर्थात् 'महाकाल' (समय) संवाद में समय का भी ध्यान रखता परम आवश्यक है। कुरुक्षेत्र में 'प्रयाग' 'अवन्तिका' के उपरान्त व्यक्ति सांध्य काल में रेणुका क्षेत्र (ब्रज) अर्थात् अपनी भोगभूमि में होता है तदुपरान्त पुनः सूकरक्षेत्र सोरों अर्थात् नींद अवचेसन या मृत्युसम स्थिति में पहुँच जाता है पुनः जागता है अर्थात् जन्म मृत्यु क्यों होती है? इस सबका महानियन्त्रक कौन है?