एमिटी विश्वविद्यालय में आयुर्वेद पर आधारित राष्ट्रीय सम्मेलन अन्तः मंथन का आयोजन

 


" alt="" aria-hidden="true" />एमिटी विश्वविद्यालय में आयुर्वेद पर आधारित राष्ट्रीय सम्मेलन अन्तः मंथन का आयोजन


एमिटी विश्वविद्यालय एंव विश्व आयुर्वेद परिषद के सहयोग से आयुर्वेद में एंडोक्राइनोलाॅजी के नैदानिक पहलु'' पर अन्तः मंथन नामक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन एफ थ्री ब्लाक सभागार, एमिटी विश्वविद्यालय का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन का उद्घाटन भारत सरकार के केन्द्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के निदेशक प्रो के एस धीमान, जयपुर के राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के निदेशक प्रो संजीव कुमार, नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के पूर्व डीन प्रो पी के प्रजापती, एमिटी सांइस टेक्नोलाॅजी एंड इनोवेशन फांउडेशन के अध्यक्ष डा डब्लू सेल्वामूर्ती, विश्व आयुर्वेद परिषद के राज्य अध्यक्ष डा सुरेंद्र चैधरी, गु्रप एडिशनल प्रो वाइस चांसलर (आर एंड डी) डा तनु जिंदल एंव एमिटी इंस्टीटयूट आॅफ इंडियन सिस्टम आॅफ मेडिसिन के निदेशक डा एस के राजपूत ने पारंपरिक दीप जलाकर किया।


इस अवसर पर एमिटी विश्वविद्यालय क एल वन ब्लाक में आयुर्वेद पर आधारित आयुष - एमिटी क्लिनिक का उद्घाटन अतिथियो द्वारा किया गया। इस क्लिनिक के अंर्तगत आम जन सहित एमिटी के शिक्षकों, छात्रों एंव कर्मचारियों को निशुल्क चिकित्सा सहायता प्रदान की जायेगी।


केन्द्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के निदेशक प्रो के एस धीमान ने छात्रों कों को संबोधित करते हुए कहा कि सर्वप्रथम जीवन क्या है उसे समझने की आवश्यकता है। जीवन के चार भाग - शरीर, इंद्रीयां, मन एंव अध्यात्म है और आयुर्वेद इन चारो भागों को जोड़ता है। आयुर्वेद, जीवन जीने की कला, विज्ञान, स्वास्थय एंव कल्याण है। वर्तमान में आधुनिक विज्ञान एंव चिकित्स भले ही आयुर्वेद को वैकल्पिक चिकित्सा मानता हो किंतु प्राचीन भारत में लगभग 5000 वर्ष पूर्व यह चिकित्सा की मुख्य पद्धती रही है। प्रो धीमान ने कहा कि आधुनिक चिकित्सा एंव विज्ञान का आयुर्वेद को कमतर आंकना हमें विश्व गुरू बनने से रोक रहा है। आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धती आपको रोग के कारण सहित सिद्धांत, ज्ञान एंव विज्ञान को समझाती है तभी परिणाम प्रभावी होता है। इतिहास बताता है कि ना जाने कितने विद्वानोे ने भारत भम्रण करके आयुर्वेद की पद्धतियों को सीखा और ज्ञान को अपने साथ अपने देश लेकर गये। आज पूर्व धारणाओं को हटाकर आयुर्वेद के महत्व को समझना होगा और मिलकर कार्य करने से हम संक्रामक, जीवनशैली आधारित रोगों से मुक्ति पाकर पूर्ण स्वस्थ हो सकते है। प्रो धीमान ने कहा कि एमिटी विश्वविद्यालय द्वारा आयुर्वेद के महत्व को बताने के लिए की गई इस पहल का असर अवश्य प्रभावी रूप से होगा। उन्होनें आयुर्वेद बायोलाॅजी में स्नातक पाठयक्रम प्रारंभ करने की सलाह भी दी।


जयपुर के राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के निदेशक प्रो संजीव कुमार ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि एमिटी द्वारा संचालित किये गये सम्मेलन ने हमारी आयुर्वेद की परंपरा एंव विरासत को आगे बढ़ाने मे योगदान दिया है। स्वंय को स्वस्थ रखना एंव परिवार को स्वस्थ रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है इससे ही पूरा समाज स्वस्थ हो पायेगा। आयुर्वेद मात्र स्वस्थता का विज्ञान नही है बल्कि जीवन विज्ञान है जिसके अंर्तगत हमारा भोजन ग्रहण करना, जीवन शैली, कार्यशैली सभी कुछ शामिल है। आयुर्वेद एक बृहद विषय है जिसके अंर्तगत सभी प्रकार के रोगों का निवारण होता है। मधुमेह को देश की राष्ट्रीय रोग बनने से रोकने के लिए हम सभी को मिलकर साझा प्रयास करना होगा। उन्होनें कहा कि शोध ने बताया है कि यकृत को स्वस्थ रखकर मधुमेह से बचा जा सकता है। जीवन शैली एक प्रक्रिया है जिसे समयानुसार बदला जा सकता है। आयुर्वेद द्वारा बताया गई जीवनशैली को अपना कर सदैव स्वस्थ रहा जा सकता है।


नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के पूर्व डीन प्रो पी के प्रजापती ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि आयुर्वेद विश्व की सबसे पुरानी शिक्षा पद्धति है जिससे वर्षो तक लोग निरोगी एंव स्वस्थ हुए है। वर्तमान जीवनशैली ने हमारे शरीर में कई परिवर्तन कर दिये है जिससे हम रोगों की चपेट में आ जाते है। प्रो प्रजापति ने कहा हमें आयुर्वेद के क्षेत्र में बेहतरीन नतीजों की प्राप्ती पर ध्यान के्रन्द्रीत करते हुए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने एंव स्वस्थ जीवन जीने की क्षमता को बढ़ाने हेतु विशेष प्रयास करना चाहिए।


               एमिटी सांइस टेक्नोलाॅजी एंड इनोवेशन फांउडेशन के अध्यक्ष डा डब्लू सेल्वामूर्ती ने अतिथियों को संबोधित करते हुए कहा कि आयुर्वेद, 5000 साल से अधिक पुराना ज्ञान है जिससे पूरे विश्व के लोग लांभावित होते रहे है। शीघ्र स्वस्थ होने के लिए अपनाये गये चिकित्सा उपायों ने नये रोग को जन्म दिया जिससे लोग पुनः योग एंव आयुर्वेद जैसे पांरपरिक पद्धतियों की ओर आ रहे है। एमिटी सदैव भारत की पांरपरिक चिकित्सा पद्धतियों के प्रचार हेतु कार्य कर करता है और छात्रों को उनके अभ्यास एंव शोध हेतु प्रोत्साहित भी करता है। इस सम्मेलन का मुख्स उददेश्य आयुर्वेद के महत्व को समझना, शोध को बढ़ावा देना सहित मिलकर क्षेत्र में छात्रों से उपलब्ध अवसरों को तलाशना है। सम्मेलन के जरीये आयुर्वेद के क्षेत्र के विद्वानों द्वारा नई पीढ़ी का मार्गदर्शन प्राप्त करना भी एक उददेश्य है।


                तकनीकी सत्र के अंर्तगत देहरादून के एचएसी प्रोफेसर डा विनेश गुप्ता, आयुष के टीकेडीएल विशेषज्ञ डा एस के बलियान, वैद्य अनुज जैन ने अपने विचार व्यक्त किये।